बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 5
पाश्चात्य काव्यशास्त्र
अरस्तू
अनुकरण सिद्धान्त
प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
अथवा
अरस्तू के अनुसार अनुकरण के विषय क्या हैं? उनका उल्लेख करते हुए अनुकरण सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अरस्तू का अनुकरण सिद्धान्त क्या है? संक्षेप में बताइए।
2. सर्जन प्रक्रिया के रूप में अनुकरण सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में यूनानी दार्शनिक अरस्तू का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसका कार्यकाल 374 ई. पू. से 322 ई. पू. माना जाता है। अरस्तू प्रसिद्ध ग्रीक विद्वान प्लेटो का प्रिय शिष्य था। प्लेटो अरस्तू को अपने विद्यापीठ का मस्तिष्क कहा करता था। अरस्तू को सिकन्दर महान के गुरु होने का भी गौरव प्राप्त था। ज्ञान-विज्ञान के लगभग प्रत्येक क्षेत्र पर उसका अधिकार था। उसे पाश्चात्य विधाओं का आदि आचार्य कहा जाता है। उसने लगभग 400 विविध विषयक ग्रन्थों की रचना की।
प्रायः यह माना जाता है कि अनुकरण सिद्धान्त का बीजारोपण प्लेटो ने कर दिया था। इस पर विवाद हो सकता है। प्लेटो ने इसकी चर्चा अवश्य की है, पर अरस्तू ने उसे परिष्कृत रूप में ग्रहण किया है।
अरस्तू का अनुकरण सिद्धान्त : अरस्तू ने 'अनुकरण' से तात्पर्य प्रतिकृति ( नकल Copy) न मानकर पुनः सृजन अथवा पुनर्निर्माण (Reproduction) माना।
(अ) प्रो. गिलबर्ट - अनुकरण को रचनात्मक कार्य मानते हैं।
(ब) स्कॉट जोन्स अनुकरण - साहित्य में जीवन का वस्तुपरक अंकन (Objective Representation of Life) तथा जीवन का कल्पनात्मक पुनर्निर्माण (Imaginative Construction of Life) स्वीकार करते हैं।
(स) बूचर अरस्तू के 'अनुकरण' - शब्द का अर्थ है सादृश्य विधान अथवा मूल का पुनरुत्पादन, सांकेतिक उल्लेख नहीं। कला या कविता को मानव जीवन के सर्वव्यापक तत्व की अभिव्यक्ति मानता हुआ वह 'अनुकरण' को रचनात्मक प्रक्रिया मानता है।
अरस्तू ने 'अनुकरण' शब्द का प्रयोग विभिन्न शास्त्रों में किया है।
भौतिकशास्त्र : यहाँ उसने कला को प्रकृति की अनुकृति स्वीकार किया (Art imitates nature physics) |
राजनीतिशास्त्र : इसमें कला को प्रकृति के सादृश्य की अनुकृति स्वीकार किया। (Making a likeness or images of nature)!
काव्यशास्त्र : इसमें मानवीय आन्तरिक भावानुभूतियों और प्रवृत्तियों की अनुकृति स्वीकार किया। संक्षेप में अनुकरण का अर्थ अरस्तू हू-ब-हू नकल करना नहीं मानता था। वह एक सर्जनात्मक क्रिया है। उसकी धारणा है कि अनुकरण की प्रक्रिया के अनेक दोषों का निराकरण करके कला द्वारा उसकी अपूर्णता की पूर्ति की जाती है-
"Art finishes the job when nature fails or imitates the missing part.
"अरस्तू के अनुसार अनुकरण मानव स्वभाव एक अभिन्न अंग है। यह प्रवृत्ति बाल्यकाल से ही रहती है।
"Imitation is natural to man from childhood and it is also for all to delight in works of imitation."
अरस्तू ने अनुकरण के सिद्धान्त में एक नया चिन्तन दिया और कला को प्रकृति का अनुकरण स्वीकार किया।
प्रकृति का अनुकरण : अरस्तू ने कला को प्रकृति की अनुकृति स्वीकार करते हुए काव्य को सौन्दर्य की दृष्टि से देखा, उसे भावात्मक आनन्द (Emitional Delight) बताया। उसके अनुसार "कविता सामान्यतः मानवीय प्रकृति की दो सहज प्रवृत्तियों से उद्भूत हुई जान पड़ती है। इनमें से एक है अनुकरण की प्रवृत्ति। कला प्रकृति का अनुकरण करती है।" .
अरस्तू की मान्यता है कि प्रकृति उस प्राकृतिक तत्व, जिसे आदर्श रूप माना जाता है, को प्राप्त करने हेतु निरन्तर सक्रिय रहती है, पर कई व्यवधानों के कारण वह उसे प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाती। कलाकार उन व्यवधानों को हटाकर प्रकृति की (सक्रियता विकास प्रक्रिया : Process of Growth) का अनुकरण करके उसे पूर्णता प्रदान करता है। (Every art aims at feeling out what nature leaves undone.)
उसके अनुसार प्रत्येक वस्तु पूर्ण विकसित होने पर जो होती है, उसे ही प्रतिकृति कहते हैं। प्रकृति जब यह आदर्श रूप प्राप्त करने में बाधा अनुभव करती है, तब कला वह कार्य पूरा करती है "Generally art partly completes what nature can not brung to a finish and partly imitates her."
अनुकरण और सर्जन प्रक्रिया : कलाकार वस्तु को ऐसा रूप देता है, जिससे उसके सर्वमान्य (Universal) रूप और आदर्श रूप (Ideal) दोनों का स्पष्ट बोध होता हो। यह कार्य अनुकरण की सर्जन प्रक्रिया के आधार पर ही होता है, क्योंकि काव्य मात्र अनुकृति नहीं, सर्जन भी है।
एबर क्राम्बी के अनुसार - अरस्तू ने कविता में अनुकरण का वही अर्थ ग्रहण किया जो अर्थआजकल हम तंत्र या शिल्प ( Technique) का मानते हैं।
अरस्तू के अनुसार यह सर्जन की प्रक्रिया तीव्र स्तरों पर सम्पन्न हो सकती है -
"The poet being an imitator just like the painter or other maker of likeness, he nest necessarily in all instances represents things in one or other of three aspects, either as they were or are, or as they are said or thought to be or to have been, or as they ought to be."
अर्थात्-
(1) जो चीजें जैसी हैं, उन्हें वैसा ही दिखाया जाय।
(2) जैसी वे लगती हैं या कही जाती हैं, उन्हें वैसा दिखाया जाय।
(3) जैसी वे होनी चाहिए, उन्हें वैसा दिखाया जाय।
अतः स्पष्ट है कि पहले स्तर का सम्बन्ध अनुकरण से है, पर दो स्तरों पर सर्जन का भाव विद्यमान है। अतः अरस्तू अनुकरण के सर्जनात्मक रूप के पक्षधर हैं, मात्र नकल के नहीं।
इसे और स्पष्ट करते हुए यह कहा गया वस्तु जगत के द्वारा कवि की संवेदना और कल्पना में जो वस्तु-रूप प्रस्तुत होता है, कवि उसी को भाषा में प्रस्तुत करता है। यह पुनः प्रस्तुतीकरण ही अनुकरण है।
"अनुकरण वह तन्त्र है जिसके द्वारा कवि अपनी कल्पनात्मक अनुभूति की प्रक्षेपणीय अभिव्यक्ति को अन्तिम रूप प्रदान करता है।"
वस्तुतः अनुकरण का अर्थ हू-ब-हू नकल (Mimicry ) नहीं, बल्कि संवेदना, अनुभूति, कल्पना, आदर्श आदि के प्रयोग द्वारा अपूर्ण को पूर्ण बनाना है। काव्य मानवी जीवन में सार्वभौम तत्व का अनुकरण करता है, व्यक्ति में जो सार्वभौम गुण हैं, उनका उद्घाटन करता है। अनुकरण के द्वारा कलाकार सार्बभौम को पहचान कर उसे सरल तथा ऐन्द्रिक रूप में पुनरुत्पादित करता है। कलाकृति कलाकार के मनोगत बिम्ब का प्रतिफल है। --डॉ. एस. एस. गुप्त
अनुकरणीय वस्तु : अरस्तू ने यह स्वीकार किया कि काव्य में (Poetics) निम्न तीन प्रकार की वस्तुओं में से किसी का भी अनुकरण हो सकता है
(1) जैसी वे थीं,
(2) जैसी वे कही या समझी जाती हैं,
(3) जैसी वे होनी चाहिए।
अनुकरण के विषय : अरस्तू ने अनुकरण के तीन विषयों की ओर भी संकेत किया है
(अ) प्रकृति,
(ब) इतिहास
(स) कार्यरत मनुष्य।
प्रकृति का अनुकरण : अरस्तू प्रकृति के अनुकरण को ही कला मानता है - (Art imitates nature) | अरस्तू के अनुसार कलाकार प्रकृति की हू-ब-हू नकल नहीं करता। वह तो उस सर्जन प्रक्रिय को पकड़ना चाहता है, जो प्रकृति में विद्यमान है किन्तु अपूर्ण है। अर्थात् किन्हीं अवरोधों के कार ( विकास की प्रक्रिया) प्रकृति का पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है या प्रकृति अपने को पूरी तरह अभिव्यि नहीं कर पा रही है, उस अभाव को कलाकार पूरा करता है। यहाँ मात्र अनुकरण नहीं, सर्जन भी होता है, क्योंकि कलाकार को उसमें कुछ अपनी ओर से भी जोड़ना होता है। अतः प्रकृति की विकासात्मक प्रक्रिया के अधूरेपन को कलाकार पूरा करता है। "Art finishes the job when nature fails, or imitates the missing parts."
इतिहास का अनुकरण : अरस्तू ने इतिहास और काव्य में अन्तर करते हुए कहा है- "कवि और इतिहासकार में वास्तविक भेद यह है कि एक तो उसका वर्णन करता है जो घटित हो चुका है और दूसरा उसका वर्णन करता है जो घटित हो सकता है काव्य सामान्य की अभिव्यक्ति है और इतिहास विशेष की। अतः 'मूर्त' और 'अमूर्त' का तो भेद दोनों में है ही 'यथार्थ' और 'संभाव्य' का भी अन्तर है।" अतः इतिहास जहाँ 'स्थूल' की अभिव्यक्ति है, कला वहीं 'सूक्ष्म' की अभिव्यक्ति है। अरस्तू 'संभाव्य' को महत्व देता है, सूक्ष्म को महत्व देता है - "The poet's function is to describe not the things that has happened but a kind of thing that might happen i.e. what is possible as being probable or necessary."
उसके अनुसार सूक्ष्म, सम्भाव्य का चित्रण करना ही काव्य का लक्ष्य है, यथार्थ, स्थूल का अनुकरण करना नहीं। अतः वह सूक्ष्म भावपरक अनुकरण का पक्षधरं था।
"A likely impossibility is always preferable to an unconvincing possibility."
कार्यरत मनुष्य का अनुकरण : कार्यरत से तात्पर्य जीवन व्यापार में सुख-दुख की अनुभूति करने वाला मनुष्य ही है। उसका कथन है- सुख, दुःख, संघर्ष की सही स्थिति में ही व्यक्ति का स्वरूप, गुण, वैशिष्ट्य उभरकर सामने आता है, मात्र उसके गुण, कथन में नहीं। अतः कलाकार को कार्यरत मनुष्य का ही चित्र उभारना अपेक्षित है, क्योंकि गुण-कथन के बिना तो त्रासदी का अस्तित्व सम्भव है, किन्तु कार्यरत मनुष्य के बिना सम्भव नहीं। "Besides this tragedy is impossible without action but there may be one without character."
अनुकरण और भारतीय चिन्तन : भारतीय साहित्य में भी इसकी मान्यता है। यह बात दूसरी है कि वह हमारे चिन्तन के अनुरूप हो।
भरतमुनि ने 'नाट्यशारा में कहा - त्रैलोक्यस्यास्य सर्वस्य नाट्यं भावनुकीर्तनम्। इस श्लोक की समूची व्याख्या अरस्तू के त्रासदी में वर्णित कार्यरत मनुष्य धारणा से मेल खाती है।
भरतमुनि के नाटक को 'काव्य' अनुकरण के आधार पर अनुकरणीय विधा मानते हैं
नाना भावोपसम्पन्नं नाना वस्थान्तरात्मकम्।
लोक वृत्तानुकरणम् नाट्य मे तन्मपा कृतम् ॥
धनंजय के अनुसार (दशरूपक) अथवा विशेष की अनुकृति ही नाटक है- 'अवस्थानुकृतिनटियम अवस्था से तात्पर्य आन्तरिक और बाह्य सभी अवस्थाओं से है।
अनुकरण सिद्धान्त की समीक्षा : अनुकरण से तात्पर्य यथार्थ का प्रत्यांकन नहीं, तत्व का, भावों का अनुकरण ही है। ऐसा अनुकरण आदर्श तत्व से युक्त रहने के कारण सौन्दर्य, आनन्द से युक्त होकर यथार्थ (जिसका अनुकरण किया गया हो) की अनुभूति कराने में भी समर्थ होता है। डॉ. नगेन्द्र ने इसे इस प्रकार स्वीकार किया है - "यह सिद्ध है कि अनुकरण का अर्थ यथार्थ प्रत्यांकन मात्र नहीं है - वह पुनः सृजन का पर्याय भी है और उसमें भाव तथा कल्पना का यथेष्ठ अन्तर्भाव है। उसमें सर्जना तथा सर्जना के आनन्द की अस्वीकृति कदापि नहीं है।'
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- प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
- प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
- प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
- प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
- प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
- प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
- प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
- प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
- प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
- प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
- प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
- प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
- प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
- प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?